ताल्लुक़ कौन रखता है किसी नाकाम से लेकिन, मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं







ताल्लुक़ कौन रखता है किसी नाकाम से लेकिन,


मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं,


मेरी खूबी पे रहते हैं यहां, अहल-ए-ज़बां ख़ामोश,


मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो, गूंगे बोल पड़ते हैं।


पूछता है जब कोई दुनिया में मोहब्बत है कहाँ,


मुस्करा देता हूँ और याद आ जाती है माँ।


भरे बाजार से अक्सर ख़ाली हाथ ही लौट आता हूँ,


पहले पैसे नहीं थे अब ख्वाहिशें नहीं रहीं।


ज़मीर जिन्दा रख, कबीर जिंदा रख,


सुल्तान भी बन जाये तो, दिल में फ़कीर जिंदा रख,


हौसले के तरकश में कोशिश का वो तीर जिंदा रख,








हार जा चाहे जिंदगी में सब कुछ,


मगर फिर से जीतने की उम्मीद जिंदा रख।


अपनों के दरमियां सियासत फ़िजूल है


मक़सद न हो कोई तो बग़ावत फ़िजूल है।


रोज़ा, नमाज़, सदक़ा-ऐ-ख़ैरात या हो हज


माँ बाप ना खुश हों, तो इबादत फ़िजूल है।


ये मंजिलें बड़ी जिद्दी होती हैं,


हासिल कहां नसीब से होती हैं।


मगर वहां तूफान भी हार जाते हैं,


जहां कश्तियां जिद्द पे होती हैं।








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